कहाँ
कहाँ जा रहे हो
सियह रौशनी की
चका-चौंद धारा के दूजे किनारे पे
अंधा कुआँ इक क़दम फ़ासला
कहाँ जी रहे हो
खुली आँख के दिल-नशीं ख़्वाब की
एक तस्वीर में
जिस की ता'बीर अज़लों से मादूम है
कहाँ हँस रहे हो
पस-ए-क़हक़हा
ऑडीबल रेंज से भी बहुत दूर नीचे
कराहों की लहरें फ़ना हो रही हैं
कहाँ देखते हो
सितारों के पीछे नई कहकशाएँ
जहाँ पे तजाज़ुब भी इस पार जैसा
रिपल्शन भी जो कि यहाँ भोगते हो
कहाँ जा रहे हो
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