ज़िंदगी मेरी थी लेकिन अब तो
तेरे कहने में रहा करती है
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सिर्फ़ एक लड़की
बुलावा
कुछ ख़बर लाई तो है बाद-ए-बहारी उस की
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
जाने कब तक तिरी तस्वीर निगाहों में रही
बजा कि आँख में नींदों के सिलसिले भी नहीं
ख़याल-ओ-ख़्वाब हुआ बर्ग-ओ-बार का मौसम
ज़िद
उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोई
हथेलियों की दुआ फूल बन के आई हो
एक मंज़र
पा-ब-गिल सब हैं रिहाई की करे तदबीर कौन