यूँ देखना उस को कि कोई और न देखे
इनआम तो अच्छा था मगर शर्त कड़ी थी
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नम हैं पलकें तिरी ऐ मौज-ए-हवा रात के साथ
हम ने ही लौटने का इरादा नहीं किया
कौन जाने कि नए साल में तू किस को पढ़े
कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने
पूरा दुख और आधा चाँद
तिरी चाहत के भीगे जंगलों में
पज़ीराई
सिर्फ़ एक लड़की
वो बाग़ में मेरा मुंतज़िर था
शौक़-ए-रक़्स से जब तक उँगलियाँ नहीं खुलतीं
इसी तरह से अगर चाहता रहा पैहम