यूँ बिछड़ना भी बहुत आसाँ न था उस से मगर
जाते जाते उस का वो मुड़ कर दोबारा देखना
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कुछ ख़बर लाई तो है बाद-ए-बहारी उस की
नम हैं पलकें तिरी ऐ मौज-ए-हवा रात के साथ
ख़ुद अपने से मिलने का तो यारा न था मुझ में
थक गया है दिल-ए-वहशी मिरा फ़रियाद से भी
पा-ब-गिल सब हैं रिहाई की करे तदबीर कौन
बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की
दरवाज़ा जो खोला तो नज़र आए खड़े वो
शब वही लेकिन सितारा और है
डसने लगे हैं ख़्वाब मगर किस से बोलिए
कुछ तो तिरे मौसम ही मुझे रास कम आए
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
फ़बेअय्ये आलाए रब्बिकमा तुकज़्ज़िबान