ये हवा कैसे उड़ा ले गई आँचल मेरा
यूँ सताने की तो आदत मिरे घनश्याम की थी
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नए साल की पहली नज़्म
रात के शायद एक बजे हैं
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
इसी में ख़ुश हूँ मिरा दुख कोई तो सहता है
जिस जा मकीन बनने के देखे थे मैं ने ख़्वाब
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा
हवा महक उठी रंग-ए-चमन बदलने लगा
खुली आँखों में सपना झाँकता है
धूप सात रंगों में फैलती है आँखों पर
किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल
पज़ीराई
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी