वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी
इंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Jaun Eliya
Gulzar
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1797) Peoples Rate This
डसने लगे हैं ख़्वाब मगर किस से बोलिए
धनक धनक मिरी पोरों के ख़्वाब कर देगा
काँप उठती हूँ मैं ये सोच के तन्हाई में
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
फ़बेअय्ये आलाए रब्बिकमा तुकज़्ज़िबान
शाम पड़ते ही किसी शख़्स की याद
एक्सटेसी
धूप सात रंगों में फैलती है आँखों पर
पज़ीराई
जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे
अश्क आँख में फिर अटक रहा है