वो मुझ को छोड़ के जिस आदमी के पास गया
बराबरी का भी होता तो सब्र आ जाता
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निक-नेम
रंग ख़ुश-बू में अगर हल हो जाए
ख़्वाब
अगरचे तुझ से बहुत इख़्तिलाफ़ भी न हुआ
एक दोस्त के नाम
बिछड़ा है जो इक बार तो मिलते नहीं देखा
सुंदर कोमल सपनों की बारात गुज़र गई जानाँ
इल्ज़ाम था दिए पे न तक़्सीर रात की
मक़्तल-ए-वक़्त में ख़ामोश गवाही की तरह
वो कहीं भी गया लौटा तो मिरे पास आया
जिस तरह ख़्वाब मिरे हो गए रेज़ा रेज़ा
चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया