वो कहीं भी गया लौटा तो मिरे पास आया
बस यही बात है अच्छी मिरे हरजाई की
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फ़बेअय्ये आलाए रब्बिकमा तुकज़्ज़िबान
चेहरा ओ नाम एक साथ आज न याद आ सके
जला दिया शजर-ए-जाँ कि सब्ज़-बख़्त न था
वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी
निक-नेम
कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी
बादबाँ खुलने से पहले का इशारा देखना
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
गए जनम की सदा
शाम आई तिरी यादों के सितारे निकले
समुंदरों के उधर से कोई सदा आई
मक़्तल-ए-वक़्त में ख़ामोश गवाही की तरह