उस ने मुझे दर-अस्ल कभी चाहा ही नहीं था
ख़ुद को दे कर ये भी धोका, देख लिया है
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वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
तेरे तोहफ़े तो सब अच्छे हैं मगर मौज-ए-बहार
मेरे चेहरे पे ग़ज़ल लिखती गईं
अपनी तन्हाई मिरे नाम पे आबाद करे
रफ़ाक़तों का मिरी उस को ध्यान कितना था
सुपुर्द कर के उसे चाँदनी के हाथों में
मुमकिना फ़ैसलों में एक हिज्र का फ़ैसला भी था
नहीं मेरा आँचल मैला है
खुलेगी उस नज़र पे चश्म-ए-तर आहिस्ता आहिस्ता
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
पास जब तक वो रहे दर्द थमा रहता है
ग़ैर मुमकिन है तिरे घर के गुलाबों का शुमार