तितलियाँ पकड़ने में दूर तक निकल जाना
कितना अच्छा लगता है फूल जैसे बच्चों पर
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टूटी है मेरी नींद मगर तुम को इस से क्या
बाब-ए-हैरत से मुझे इज़्न-ए-सफ़र होने को है
मसअला
न जाने कौन सा आसेब दिल में बस्ता है
रुकी हुई है अभी तक बहार आँखों में
क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला
ताज-महल
पूरा दुख और आधा चाँद
क़दमों में भी तकान थी घर भी क़रीब था
घर आप ही जगमगा उठेगा
अब्र बरसे तो इनायत उस की
धूप सात रंगों में फैलती है आँखों पर