थक गया है दिल-ए-वहशी मिरा फ़रियाद से भी
जी बहलता नहीं ऐ दोस्त तिरी याद से भी
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ज़ूद-पशीमान
अपनी रुस्वाई तिरे नाम का चर्चा देखूँ
क़र्या-ए-जाँ में कोई फूल खिलाने आए
सुपुर्द कर के उसे चाँदनी के हाथों में
खुली आँखों में सपना झाँकता है
इल्ज़ाम था दिए पे न तक़्सीर रात की
हवा-ए-ताज़ा में फिर जिस्म ओ जाँ बसाने का
अोथेलो
घर आप ही जगमगा उठेगा
गवाही कैसे टूटती मुआ'मला ख़ुदा का था
वो बाग़ में मेरा मुंतज़िर था
जुदाई की पहली रात