तिरी चाहत के भीगे जंगलों में
मिरा तन मोर बन कर नाचता है
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मक़्तल-ए-वक़्त में ख़ामोश गवाही की तरह
रुख़्सत करने के आदाब निभाने ही थे
बोझ उठाते हुए फिरती है हमारा अब तक
चराग़-ए-राह बुझा क्या कि रहनुमा भी गया
चारासाज़ों की अज़िय्यत नहीं देखी जाती
कौन जाने कि नए साल में तू किस को पढ़े
कल रात जो ईंधन के लिए कट के गिरा है
इसी तरह से अगर चाहता रहा पैहम
ये हवा कैसे उड़ा ले गई आँचल मेरा
तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ साथ
शाम आई तिरी यादों के सितारे निकले
अपनी रुस्वाई तिरे नाम का चर्चा देखूँ