तेरे पैमाने में गर्दिश नहीं बाक़ी साक़ी
और तिरी बज़्म से अब कोई उठा चाहता है
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चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
नम हैं पलकें तिरी ऐ मौज-ए-हवा रात के साथ
क़ैद में गुज़रेगी जो उम्र बड़े काम की थी
जिस जा मकीन बनने के देखे थे मैं ने ख़्वाब
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं
बंद कर के मिरी आँखें वो शरारत से हँसे
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा
पा-ब-गिल सब हैं रिहाई की करे तदबीर कौन
टूटी है मेरी नींद मगर तुम को इस से क्या
कल रात जो ईंधन के लिए कट के गिरा है