तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ साथ
ऐसी बरसातें कि बादल भीगता है साथ साथ
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बंद कर के मिरी आँखें वो शरारत से हँसे
इसी में ख़ुश हूँ मिरा दुख कोई तो सहता है
अब उन दरीचों पे गहरे दबीज़ पर्दे हैं
कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए
रस्ते में मिल गया तो शरीक-ए-सफ़र न जान
जाने कब तक तिरी तस्वीर निगाहों में रही
पा-ब-गिल सब हैं रिहाई की करे तदबीर कौन
ताज़ा मोहब्बतों का नशा जिस्म-ओ-जाँ में है
वो मजबूरी नहीं थी ये अदाकारी नहीं है
सिर्फ़ एक लड़की
मेरे चेहरे पे ग़ज़ल लिखती गईं
तेरे पैमाने में गर्दिश नहीं बाक़ी साक़ी