सिर्फ़ इस तकब्बुर में उस ने मुझ को जीता था
ज़िक्र हो न उस का भी कल को ना-रसाओं में
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अोथेलो
दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं
जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे
ग़ैर-मुमकिन है तिरे घर के गुलाबों का शुमार
यही वो दिन थे जब इक दूसरे को पाया था
अब भला छोड़ के घर क्या करते
तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ साथ
सुपुर्द कर के उसे चाँदनी के हाथों में
मेरी तलब था एक शख़्स वो जो नहीं मिला तो फिर
निक-नेम
जाने कब तक तिरी तस्वीर निगाहों में रही
नहीं मेरा आँचल मैला है