शब वही लेकिन सितारा और है
अब सफ़र का इस्तिआरा और है
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तिरी चाहत के भीगे जंगलों में
मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
बारहा तेरा इंतिज़ार किया
घर आप ही जगमगा उठेगा
इक हुनर था कमाल था क्या था
इल्ज़ाम था दिए पे न तक़्सीर रात की
बोझ उठाते हुए फिरती है हमारा अब तक
मेरे चेहरे पे ग़ज़ल लिखती गईं
खुलेगी उस नज़र पे चश्म-ए-तर आहिस्ता आहिस्ता
कौन जाने कि नए साल में तू किस को पढ़े
मशवरा
दरवाज़ा जो खोला तो नज़र आए खड़े वो