राय पहले से बना ली तू ने
दिल में अब हम तिरे घर क्या करते
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चेहरा ओ नाम एक साथ आज न याद आ सके
मेरी तलब था एक शख़्स वो जो नहीं मिला तो फिर
सभी गुनाह धुल गए सज़ा ही और हो गई
निक-नेम
बिछड़ा है जो इक बार तो मिलते नहीं देखा
घर आप ही जगमगा उठेगा
क़ैद में गुज़रेगी जो उम्र बड़े काम की थी
ख़ुद अपने से मिलने का तो यारा न था मुझ में
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
कुछ ख़बर लाई तो है बाद-ए-बहारी उस की
अोथेलो
नम हैं पलकें तिरी ऐ मौज-ए-हवा रात के साथ