मुमकिना फ़ैसलों में एक हिज्र का फ़ैसला भी था
हम ने तो एक बात की उस ने कमाल कर दिया
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अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं
चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
बोझ उठाते हुए फिरती है हमारा अब तक
बदन के कर्ब को वो भी समझ न पाएगा
मर भी जाऊँ तो कहाँ लोग भुला ही देंगे
अोथेलो
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
गवाही कैसे टूटती मुआमला ख़ुदा का था
वक़्त-ए-रुख़्सत आ गया दिल फिर भी घबराया नहीं
गुलाब हाथ में हो आँख में सितारा हो
ख़्वाब
रफ़ाक़तों का मिरी उस को ध्यान कितना था