मेरी चादर तो छिनी थी शाम की तन्हाई में
बे-रिदाई को मिरी फिर दे गया तश्हीर कौन
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नए साल की पहली नज़्म
वो बाग़ में मेरा मुंतज़िर था
काँटों में घिरे फूल को चूम आएगी लेकिन
काँप उठती हूँ मैं ये सोच के तन्हाई में
कौन जाने कि नए साल में तू किस को पढ़े
क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला
समुंदरों के उधर से कोई सदा आई
पूरा दुख और आधा चाँद
पास जब तक वो रहे दर्द थमा रहता है
इक नाम क्या लिखा तिरा साहिल की रेत पर
मशवरा
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी