मसअला जब भी चराग़ों का उठा
फ़ैसला सिर्फ़ हवा करती है
Habib Jalib
Allama Iqbal
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Gulzar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(698) Peoples Rate This
रुकी हुई है अभी तक बहार आँखों में
हारने में इक अना की बात थी
यूँ बिछड़ना भी बहुत आसाँ न था उस से मगर
रुख़्सत करने के आदाब निभाने ही थे
रस्ते में मिल गया तो शरीक-ए-सफ़र न जान
रफ़ाक़तों के नए ख़्वाब ख़ुशनुमा हैं मगर
ख़्वाब
गुलाबी पाँव मिरे चम्पई बनाने को
इक नाम क्या लिखा तिरा साहिल की रेत पर
बस ये हुआ कि उस ने तकल्लुफ़ से बात की
तेरे तोहफ़े तो सब अच्छे हैं मगर मौज-ए-बहार
वक़्त-ए-रुख़्सत आ गया दिल फिर भी घबराया नहीं