मक़्तल-ए-वक़्त में ख़ामोश गवाही की तरह
दिल भी काम आया है गुमनाम सिपाही की तरह
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Habib Jalib
Allama Iqbal
Gulzar
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Anwar Masood
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अब उन दरीचों पे गहरे दबीज़ पर्दे हैं
मुश्किल है कि अब शहर में निकले कोई घर से
रुकने का समय गुज़र गया है
सिर्फ़ एक लड़की
निक-नेम
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा
बुलावा
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
शाम आई तिरी यादों के सितारे निकले
मर भी जाऊँ तो कहाँ लोग भुला ही देंगे
दरवाज़ा जो खोला तो नज़र आए खड़े वो
इल्ज़ाम था दिए पे न तक़्सीर रात की