कुछ तो तिरे मौसम ही मुझे रास कम आए
और कुछ मिरी मिट्टी में बग़ावत भी बहुत थी
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सिर्फ़ एक लड़की
मैं उस की दस्तरस में हूँ मगर वो
चाँद रात
मर भी जाऊँ तो कहाँ लोग भुला ही देंगे
जिस जा मकीन बनने के देखे थे मैं ने ख़्वाब
एक मुश्त-ए-ख़ाक और वो भी हवा की ज़द में है
उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोई
बिछड़ा है जो इक बार तो मिलते नहीं देखा
शब वही लेकिन सितारा और है
ख़याल-ओ-ख़्वाब हुआ बर्ग-ओ-बार का मौसम
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
कल रात जो ईंधन के लिए कट के गिरा है