कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए
पानी को अब तो सर से गुज़र जाना चाहिए
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जिस जा मकीन बनने के देखे थे मैं ने ख़्वाब
तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ साथ
बजा कि आँख में नींदों के सिलसिले भी नहीं
हारने में इक अना की बात थी
कौन जाने कि नए साल में तू किस को पढ़े
चारासाज़ों की अज़िय्यत नहीं देखी जाती
गुलाब हाथ में हो आँख में सितारा हो
ख़ुद अपने से मिलने का तो यारा न था मुझ में
धूप सात रंगों में फैलती है आँखों पर
इल्ज़ाम था दिए पे न तक़्सीर रात की
क़ैद में गुज़रेगी जो उम्र बड़े काम की थी
क़दमों में भी तकान थी घर भी क़रीब था