कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
उस ने ख़ुश्बू की तरह मेरी पज़ीराई की
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ज़िंदगी मेरी थी लेकिन अब तो
यूँ देखना उस को कि कोई और न देखे
मर भी जाऊँ तो कहाँ लोग भुला ही देंगे
मुमकिना फ़ैसलों में एक हिज्र का फ़ैसला भी था
क़र्या-ए-जाँ में कोई फूल खिलाने आए
अपने क़ातिल की ज़ेहानत से परेशान हूँ मैं
इतने घने बादल के पीछे
दरवाज़ा जो खोला तो नज़र आए खड़े वो
सुंदर कोमल सपनों की बारात गुज़र गई जानाँ
चारासाज़ों की अज़िय्यत नहीं देखी जाती
पूरा दुख और आधा चाँद
अब इतनी सादगी लाएँ कहाँ से