ख़ुद अपने से मिलने का तो यारा न था मुझ में
मैं भीड़ में गुम हो गई तन्हाई के डर से
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कभी कभार उसे देख लें कहीं मिल लें
चराग़-ए-राह बुझा क्या कि रहनुमा भी गया
क़ैद में गुज़रेगी जो उम्र बड़े काम की थी
अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोई
मैं फ़क़त चलती रही मंज़िल को सर उस ने किया
थक गया है दिल-ए-वहशी मिरा फ़रियाद से भी
ताज-महल
किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल
गए जनम की सदा
जुदाई की पहली रात
कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी
बारहा तेरा इंतिज़ार किया