कौन जाने कि नए साल में तू किस को पढ़े
तेरा मेयार बदलता है निसाबों की तरह
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Habib Jalib
Gulzar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(532) Peoples Rate This
हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
जिस जा मकीन बनने के देखे थे मैं ने ख़्वाब
गए जनम की सदा
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
कभी कभार उसे देख लें कहीं मिल लें
ग़ैर-मुमकिन है तिरे घर के गुलाबों का शुमार
क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला
जब साज़ की लय बदल गई थी
डसने लगे हैं ख़्वाब मगर किस से बोलिए
उस ने जलती हुई पेशानी पे जब हाथ रखा
अपनी रुस्वाई तिरे नाम का चर्चा देखूँ
क़ैद में गुज़रेगी जो उम्र बड़े काम की थी