काँटों में घिरे फूल को चूम आएगी लेकिन
तितली के परों को कभी छिलते नहीं देखा
Gulzar
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Rahat Indori
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(571) Peoples Rate This
मैं उस की दस्तरस में हूँ मगर वो
ए'तिराफ़
शाम आई तिरी यादों के सितारे निकले
गूँगे लबों पे हर्फ़-ए-तमन्ना किया मुझे
समुंदरों के उधर से कोई सदा आई
क़र्या-ए-जाँ में कोई फूल खिलाने आए
खुली आँखों में सपना झाँकता है
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
मुझे मत बताना
पूरा दुख और आधा चाँद
पास जब तक वो रहे दर्द थमा रहता है
गवाही कैसे टूटती मुआ'मला ख़ुदा का था