काँप उठती हूँ मैं ये सोच के तन्हाई में
मेरे चेहरे पे तिरा नाम न पढ़ ले कोई
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बुलावा
नए साल की पहली नज़्म
सभी गुनाह धुल गए सज़ा ही और हो गई
वाहिमा
पा-ब-गिल सब हैं रिहाई की करे तदबीर कौन
तेरे तोहफ़े तो सब अच्छे हैं मगर मौज-ए-बहार
थक गया है दिल-ए-वहशी मिरा फ़रियाद से भी
ज़ूद-पशीमान
हर्फ़-ए-ताज़ा नई ख़ुशबू में लिखा चाहता है
उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोई
धूप सात रंगों में फैलती है आँखों पर
सिर्फ़ एक लड़की