कल रात जो ईंधन के लिए कट के गिरा है
चिड़ियों को बहुत प्यार था उस बूढ़े शजर से
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क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला
रफ़ाक़तों का मिरी उस को ध्यान कितना था
काँप उठती हूँ मैं ये सोच के तन्हाई में
सुंदर कोमल सपनों की बारात गुज़र गई जानाँ
शब वही लेकिन सितारा और है
इतने घने बादल के पीछे
शब की तन्हाई में अब तो अक्सर
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए
शाम पड़ते ही किसी शख़्स की याद
ज़ूद-पशीमान
रफ़ाक़तों के नए ख़्वाब ख़ुशनुमा हैं मगर
ख़ुद अपने से मिलने का तो यारा न था मुझ में