जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे
चाँद के हमराह हम हर शब सफ़र करते रहे
Jaun Eliya
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एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा
ख़्वाब
कौन जाने कि नए साल में तू किस को पढ़े
उस ने मुझे दर-अस्ल कभी चाहा ही नहीं था
डसने लगे हैं ख़्वाब मगर किस से बोलिए
जगा सके न तिरे लब लकीर ऐसी थी
एक दोस्त के नाम
हवा-ए-ताज़ा में फिर जिस्म ओ जाँ बसाने का
ज़ूद-पशीमान
सुंदर कोमल सपनों की बारात गुज़र गई जानाँ
दुख नविश्ता है तो आँधी को लिखा आहिस्ता
पूरा दुख और आधा चाँद