जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें
बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए
Jaun Eliya
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Mir Taqi Mir
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Rahat Indori
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दुआ का टूटा हुआ हर्फ़ सर्द आह में है
मेरी चादर तो छिनी थी शाम की तन्हाई में
अपनी रुस्वाई तिरे नाम का चर्चा देखूँ
दिल अजब शहर कि जिस पर भी खुला दर उस का
रस्ता भी कठिन धूप में शिद्दत भी बहुत थी
रस्ते में मिल गया तो शरीक-ए-सफ़र न जान
ये क्या कि वो जब चाहे मुझे छीन ले मुझ से
अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोई
मशवरा
हाथ मेरे भूल बैठे दस्तकें देने का फ़न
गए मौसम में जो खिलते थे गुलाबों की तरह
क़र्या-ए-जाँ में कोई फूल खिलाने आए