जिस जा मकीन बनने के देखे थे मैं ने ख़्वाब
उस घर में एक शाम की मेहमान भी न थी
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इसी तरह से अगर चाहता रहा पैहम
बहुत से लोग थे मेहमान मेरे घर लेकिन
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
एक मुश्त-ए-ख़ाक और वो भी हवा की ज़द में है
कभी कभार उसे देख लें कहीं मिल लें
उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोई
बस ये हुआ कि उस ने तकल्लुफ़ से बात की
गए मौसम में जो खिलते थे गुलाबों की तरह
ताज-महल
क़ैद में गुज़रेगी जो उम्र बड़े काम की थी
रस्ते में मिल गया तो शरीक-ए-सफ़र न जान
तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ साथ