इसी तरह से अगर चाहता रहा पैहम
सुख़न-वरी में मुझे इंतिख़ाब कर देगा
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मेरी चादर तो छिनी थी शाम की तन्हाई में
सभी गुनाह धुल गए सज़ा ही और हो गई
धूप सात रंगों में फैलती है आँखों पर
डसने लगे हैं ख़्वाब मगर किस से बोलिए
गुलाब हाथ में हो आँख में सितारा हो
कुछ ख़बर लाई तो है बाद-ए-बहारी उस की
अब भला छोड़ के घर क्या करते
घर आप ही जगमगा उठेगा
हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा
तुझे मनाऊँ कि अपनी अना की बात सुनूँ
लेकिन बड़ी देर हो चुकी थी
सिर्फ़ इस तकब्बुर में उस ने मुझ को जीता था