हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
दो घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं
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मेरे चेहरे पे ग़ज़ल लिखती गईं
अगरचे तुझ से बहुत इख़्तिलाफ़ भी न हुआ
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
अजब नहीं है कि दिल पर जमी मिली काई
कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने
इक नाम क्या लिखा तिरा साहिल की रेत पर
अपनी रुस्वाई तिरे नाम का चर्चा देखूँ
क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला
शाम पड़ते ही किसी शख़्स की याद
रंग ख़ुश-बू में अगर हल हो जाए
सभी गुनाह धुल गए सज़ा ही और हो गई