हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
दो घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं
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जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
तराश कर मिरे बाज़ू उड़ान छोड़ गया
ये क्या कि वो जब चाहे मुझे छीन ले मुझ से
तेरे तोहफ़े तो सब अच्छे हैं मगर मौज-ए-बहार
वो बाग़ में मेरा मुंतज़िर था
मेरी तलब था एक शख़्स वो जो नहीं मिला तो फिर
दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं
हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
बोझ उठाते हुए फिरती है हमारा अब तक
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा