हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
दो घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं
Rahat Indori
Gulzar
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ताज़ा मोहब्बतों का नशा जिस्म-ओ-जाँ में है
जिस जा मकीन बनने के देखे थे मैं ने ख़्वाब
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
चाँद रात
शौक़-ए-रक़्स से जब तक उँगलियाँ नहीं खुलतीं
हारने में इक अना की बात थी
खुली आँखों में सपना झाँकता है
एक्सटेसी
रफ़ाक़तों का मिरी उस को ध्यान कितना था
शब की तन्हाई में अब तो अक्सर
उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोई
क़दमों में भी तकान थी घर भी क़रीब था