हथेलियों की दुआ फूल बन के आई हो
कभी तो रंग मिरे हाथ का हिनाई हो
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नहीं मेरा आँचल मैला है
बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की
बादबाँ खुलने से पहले का इशारा देखना
वक़्त-ए-रुख़्सत आ गया दिल फिर भी घबराया नहीं
ए'तिराफ़
ज़ुल्म सहना भी तो ज़ालिम की हिमायत ठहरा
धूप सात रंगों में फैलती है आँखों पर
ज़ूद-पशीमान
मुमकिना फ़ैसलों में एक हिज्र का फ़ैसला भी था
सुपुर्द कर के उसे चाँदनी के हाथों में
मेरे चेहरे पे ग़ज़ल लिखती गईं
उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोई