हाथ मेरे भूल बैठे दस्तकें देने का फ़न
बंद मुझ पर जब से उस के घर का दरवाज़ा हुआ
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ताज-महल
रफ़ाक़तों के नए ख़्वाब ख़ुशनुमा हैं मगर
ग़ैर मुमकिन है तिरे घर के गुलाबों का शुमार
ज़िंदगी बे-साएबाँ बे-घर कहीं ऐसी न थी
शब की तन्हाई में अब तो अक्सर
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोई
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोई
मुझे मत बताना
कल रात जो ईंधन के लिए कट के गिरा है
जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें