हारने में इक अना की बात थी
जीत जाने में ख़सारा और है
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अब इतनी सादगी लाएँ कहाँ से
इक हुनर था कमाल था क्या था
सभी गुनाह धुल गए सज़ा ही और हो गई
निक-नेम
जगा सके न तिरे लब लकीर ऐसी थी
जिज़्या
ये हवा कैसे उड़ा ले गई आँचल मेरा
यूँ बिछड़ना भी बहुत आसाँ न था उस से मगर
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए
इक नाम क्या लिखा तिरा साहिल की रेत पर
मर भी जाऊँ तो कहाँ लोग भुला ही देंगे
हथेलियों की दुआ फूल बन के आई हो