गुलाबी पाँव मिरे चम्पई बनाने को
किसी ने सहन में मेहंदी की बाड़ उगाई हो
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हर्फ़-ए-ताज़ा नई ख़ुशबू में लिखा चाहता है
हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
कल रात जो ईंधन के लिए कट के गिरा है
सभी गुनाह धुल गए सज़ा ही और हो गई
नम हैं पलकें तिरी ऐ मौज-ए-हवा रात के साथ
पूरा दुख और आधा चाँद
वो बाग़ में मेरा मुंतज़िर था
मक़्तल-ए-वक़्त में ख़ामोश गवाही की तरह
जुदाई की पहली रात
जिज़्या
धनक धनक मिरी पोरों के ख़्वाब कर देगा