घर आप ही जगमगा उठेगा
दहलीज़ पे इक क़दम बहुत है
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ज़ुल्म सहना भी तो ज़ालिम की हिमायत ठहरा
कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए
गुलाबी पाँव मिरे चम्पई बनाने को
धनक धनक मिरी पोरों के ख़्वाब कर देगा
तेरी ख़ुश्बू का पता करती है
पा-ब-गिल सब हैं रिहाई की करे तदबीर कौन
अपने क़ातिल की ज़ेहानत से परेशान हूँ मैं
हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
चेहरा ओ नाम एक साथ आज न याद आ सके
बिछड़ा है जो इक बार तो मिलते नहीं देखा
बंद कर के मिरी आँखें वो शरारत से हँसे
कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी