ग़ैर मुमकिन है तिरे घर के गुलाबों का शुमार
मेरे रिसते हुए ज़ख़्मों के हिसाबों की तरह
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जला दिया शजर-ए-जाँ कि सब्ज़-बख़्त न था
दिल अजब शहर कि जिस पर भी खुला दर उस का
ताज-महल
सिर्फ़ एक लड़की
गुलाब हाथ में हो आँख में सितारा हो
हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
अपनी रुस्वाई तिरे नाम का चर्चा देखूँ
तिरी चाहत के भीगे जंगलों में
ज़ूद-पशीमान
ये हवा कैसे उड़ा ले गई आँचल मेरा
कुछ ख़बर लाई तो है बाद-ए-बहारी उस की
निक-नेम