इक नाम क्या लिखा तिरा साहिल की रेत पर
फिर उम्र भर हवा से मेरी दुश्मनी रही
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तुझे मनाऊँ कि अपनी अना की बात सुनूँ
चराग़-ए-राह बुझा क्या कि रहनुमा भी गया
तिरी चाहत के भीगे जंगलों में
वो कहीं भी गया लौटा तो मिरे पास आया
नए साल की पहली नज़्म
चारासाज़ों की अज़िय्यत नहीं देखी जाती
रफ़ाक़तों का मिरी उस को ध्यान कितना था
इतने घने बादल के पीछे
सभी गुनाह धुल गए सज़ा ही और हो गई
एक मुश्त-ए-ख़ाक और वो भी हवा की ज़द में है
थक गया है दिल-ए-वहशी मिरा फ़रियाद से भी