एक मुश्त-ए-ख़ाक और वो भी हवा की ज़द में है
ज़िंदगी की बेबसी का इस्तिआरा देखना
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Rahat Indori
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(589) Peoples Rate This
बाब-ए-हैरत से मुझे इज़्न-ए-सफ़र होने को है
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
खुली आँखों में सपना झाँकता है
ज़िद
रुकी हुई है अभी तक बहार आँखों में
राय पहले से बना ली तू ने
ये हवा कैसे उड़ा ले गई आँचल मेरा
इसी तरह से अगर चाहता रहा पैहम
मुझे मत बताना
रफ़ाक़तों का मिरी उस को ध्यान कितना था
समुंदरों के उधर से कोई सदा आई
बख़्त से कोई शिकायत है न अफ़्लाक से है