दिल अजब शहर कि जिस पर भी खुला दर इस का
वो मुसाफ़िर इसे हर सम्त से बर्बाद करे
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एक मुश्त-ए-ख़ाक और वो भी हवा की ज़द में है
पा-ब-गिल सब हैं रिहाई की करे तदबीर कौन
क़ैद में गुज़रेगी जो उम्र बड़े काम की थी
तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ साथ
जाने कब तक तिरी तस्वीर निगाहों में रही
थक गया है दिल-ए-वहशी मिरा फ़रियाद से भी
हर्फ़-ए-ताज़ा नई ख़ुशबू में लिखा चाहता है
सभी गुनाह धुल गए सज़ा ही और हो गई
जिज़्या
शाम पड़ते ही किसी शख़्स की याद
गुलाब हाथ में हो आँख में सितारा हो
दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं