दरवाज़ा जो खोला तो नज़र आए खड़े वो
हैरत है मुझे आज किधर भूल पड़े वो
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जब साज़ की लय बदल गई थी
धूप सात रंगों में फैलती है आँखों पर
रफ़ाक़तों के नए ख़्वाब ख़ुशनुमा हैं मगर
पा-ब-गिल सब हैं रिहाई की करे तदबीर कौन
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
सभी गुनाह धुल गए सज़ा ही और हो गई
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा
ग़ैर मुमकिन है तिरे घर के गुलाबों का शुमार
जाने कब तक तिरी तस्वीर निगाहों में रही
कल रात जो ईंधन के लिए कट के गिरा है
अब इतनी सादगी लाएँ कहाँ से
इसी तरह से अगर चाहता रहा पैहम