चेहरा ओ नाम एक साथ आज न याद आ सके
वक़्त ने किस शबीह को ख़्वाब ओ ख़याल कर दिया
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अजब नहीं है कि दिल पर जमी मिली काई
ज़िंदगी मेरी थी लेकिन अब तो
अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं
तेरे पैमाने में गर्दिश नहीं बाक़ी साक़ी
हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा
क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला
रुकने का समय गुज़र गया है
ये हवा कैसे उड़ा ले गई आँचल मेरा
क़र्या-ए-जाँ में कोई फूल खिलाने आए
इक हुनर था कमाल था क्या था
वो हम नहीं जिन्हें सहना ये जब्र आ जाता
राय पहले से बना ली तू ने