चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया
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थक गया है दिल-ए-वहशी मिरा फ़रियाद से भी
समुंदरों के उधर से कोई सदा आई
क़र्या-ए-जाँ में कोई फूल खिलाने आए
हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
ज़ूद-पशीमान
ताज़ा मोहब्बतों का नशा जिस्म-ओ-जाँ में है
शब वही लेकिन सितारा और है
गुलाब हाथ में हो आँख में सितारा हो
मसअला जब भी चराग़ों का उठा
तिरी चाहत के भीगे जंगलों में
अगरचे तुझ से बहुत इख़्तिलाफ़ भी न हुआ
धनक धनक मिरी पोरों के ख़्वाब कर देगा