बख़्त से कोई शिकायत है न अफ़्लाक से है
यही क्या कम है कि निस्बत मुझे इस ख़ाक से है
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नहीं मेरा आँचल मैला है
हाथ मेरे भूल बैठे दस्तकें देने का फ़न
उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोई
इक हुनर था कमाल था क्या था
इसी में ख़ुश हूँ मिरा दुख कोई तो सहता है
टूटी है मेरी नींद मगर तुम को इस से क्या
रफ़ाक़तों का मिरी उस को ध्यान कितना था
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
अपने क़ातिल की ज़ेहानत से परेशान हूँ मैं
हथेलियों की दुआ फूल बन के आई हो
क़र्या-ए-जाँ में कोई फूल खिलाने आए
ए'तिराफ़