बहुत से लोग थे मेहमान मेरे घर लेकिन
वो जानता था कि है एहतिमाम किस के लिए
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कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए
फ़रोग़ फ़रख़-ज़ाद के लिए एक नज़्म
न जाने कौन सा आसेब दिल में बस्ता है
रफ़ाक़तों का मिरी उस को ध्यान कितना था
अब भला छोड़ के घर क्या करते
बंद कर के मिरी आँखें वो शरारत से हँसे
राय पहले से बना ली तू ने
वो हम नहीं जिन्हें सहना ये जब्र आ जाता
रात के शायद एक बजे हैं
जला दिया शजर-ए-जाँ कि सब्ज़-बख़्त न था
कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने
मैं फूल चुनती रही और मुझे ख़बर न हुई